Tuesday, August 11, 2015

पिछले कई दिनों से संसद का ड्रामा देख रहे है,क्या ये है इस देश का लोकतंत्र ? अगर ये लोकतंत्र है तो क्या वाकई हमे ऐसे लोकतंत्र की आवश्यकता है ? ऐसे चलेगा हमारा देश ? क्या ये लोग चलाएंगे इस देश को ? सभी सांसदों को वंहा की कैंटीन में फ्री खाना चाहिए,सभी सांसदों को अपनी तनख्वाह में बढ़ोतरी चाहिए , किस लिए ? संसद में हंगामा करने और देश को पूरी दुनियां के सामने शर्मिंदा करने के लिए ? ऐसे कई सवाल मेरे दिमाग में चल रहे है,बस जवाब नहीं मिल रहे......
आप तय करें कौन संत,कौन भगवान,क्या है आस्था? मीडिया नहीं।
L.D.Sharma
दौड़ धर्म क्या है ? संत कौन है ? भगवान कौन है ?आस्था क्या है ?? पिछले एक साल से ऐसे कई मामले सामने आये जिनके मीडिया ने खूब मज़े लिए ,ऐसी कई स्टोरीज का सहारा लेकर नंबरों की दौड़ में दिखे और कई तो जो नंबरों की दौड़ में नहीं थे वो तो ऐसे मुद्दे उठा कर नंबरों की दौड़ में शामिल भी हो गए ! आज कल राधा माँ को लेकर भी खासे उत्त्साही दिखाई दे रहे हैं , सभी ये चाहते हैं कि अपने नंबर बढाने का अच्छा मौका मिला है ! ऐसा नही है कि मैं कोई राधा माँ का भक्त हूँ ,मैं आप को बता दूं कि मैंने भी इस देश के करोडों लोगों की तरह मीडिया में उनका नाम आने के बाद ही उन्हें जानने लगा हूँ ! go-home-indian-media-02 तो बात चल रही थी मीडिया की अंधी दौड़ और धर्म ,संत ,भगवान और आस्था की,बात शुरू होती है निर्मल बाबा से ,एक वक़्त ऐसा था जब सभी टीवी चैनल निर्मल दरबार दिखा—दिखा कर अपनी तिजोरियां भर रहे थे,कुछ समय बाद बाबा को लगा कि अब टीवी की जरुरत नहीं उनकी प्रसिद्धी बहुत हो गयी, अब टीवी चैनल की क्या जरुरत?सब बंद फिर क्या था एक छोटे से मामले से इतना बड़ा बवाल हुआ की हर एक खबरिया चैनल पर सिर्फ बाबा की सम्पत्ति,उनके दरबार,उनकी चाल बाज़ी और हर जगह बड़ी बड़ी बहस होने लगी,सभी चैनल पर प्राइम टाइम में सिर्फ एक ही न्यूज़ बाबा का दरबार , आम जनता जो बाबा के दरबार में एक आस्था से जाते थे उन्हें बेवकूफ बताने की भरसक कोशिश हुई, कुछ दिन हंगामा होने के बाद नतीजा क्या निकला ?? बेचारे बाबा को फिर से आना पड़ा टीवी पर और आज रोज दोपहर कई न्यूज़ चैनल पर दिखाई देने लगे ! फिर आया आशा राम और नारायण साईं, कोर्ट क्या फैसला करेगा ये तो वक़्त बताएगा लेकिन टीवी ने इतना ट्रायल चलाया कि कई बार तो लगने लगा की इस देश में उनके अलावा कोई दूसरी घटना होती ही नही ,खबरों का ही अकाल आ गया ,कितनी ही बहस हुई टीवी पर ,कई बड़े ज्ञानी ध्यानी बैठे टीवी पर और होने लगी बहस धर्म ,संत ,भगवान और आस्था पर। फिर से बापू के दरबार में जाने वाले भक्तो को बेवकूफ बताने को कोशिश हुई ! एक दिन शंकराचार्य का बयान फिर से तूफ़ान ला देता है, साईं बाबा पर, वो भगवान है की नही ? वो संत थे या फ़कीर ? हिन्दू उनकी पूजा करे या मुसलमान ? फिर से टीवी पर दरबार लगे ,देश के पढ़े लिखे पत्रकारों का और कुछ स्वघोषित हिन्दू धर्म के प्रवक्ताओं का क्या किया जाये और क्या नहीं ? कुछ समझ नहीं आया,लेकिन उन दिनों इस बहस से एक बात निकल कर आई कि लोग किसकी पूजा करेंगे ,किस धर्म,संत ,भगवान को मानेंगे वो उनका खुद का फैसला है , वो बेवकूफ है या समझदार इसका फैसला कौन करेगा ? अब राधे माँ को लेकर फिर से वही दौर चल रहा है , आखिर क्या होगा आगे ? क्या करे ? क्या वाकई धर्म,संत, भगवान और आस्था का मतलब बदल गया है ? या फिर ये फैसला हम करेंगे कि हम किसे धर्म,संत और भगवान मानें या फिर हम रोज—रोज अपनी आस्था और भगवान टीवी के रोज रोज के खुलासों के बाद बदलते रहेंगे ?

Tuesday, January 18, 2011

सच क्‍या है ?

सच क्‍या है ?
हम इश्‍वर को पुजते है उनकी आरती उतारते है और पता नही हम धर्म और आस्‍था के नाम पर क्‍या क्‍या नही करते, पर यह सब करते क्‍यो है ? यह एक ऐसा सवाल है जिसका कोई एक जवाब नही होगा हर एक के अलग अलग जवाब होगें। कोई इश्‍वर को प्रसन्‍न करना चाहता है तो कोई आगे के जन्‍मो से मुक्ति चाहता है और कई लोग तो सिर्फ इस लिए इश्‍वर को पुजते है तथा मानते है क्‍योकि बाकी लोग यह सब कर रहे है।
इस देश में ऐसे सैकडो् धार्मिक स्‍थान है जहॉ पर हर वर्ष लाखों करोडो् लोग जाते है और आस्‍था के नाम करोडो् रूपयों की बौछार वहॉ लगी इश्‍वर की मुर्तियों पर करते है।
जैसे इस देश में सैकडो् तीर्थ स्‍थान है वहीं हजारो की संख्‍या में मंदिर भी है तथा हजारों की संख्‍या में साधु संत है जो कथाऐं करते है प्रवचन देते है लेकिन उन प्रवचनो को सुन कर कितने लोग अपनी जिदंगी में उन प्रवचनो या उनके सुनाये वेदो पुराणो की बातों को अपने जीवन धारण कर पाते है, शायद बहुत मुश्किल सवाल है पर हकीकत है की कोई नही । शायद इस सवाल का जवाब सब को चौंका देने वाला है लेकिन सच्‍चाई यही है । अगर लोग वेदो पुराणो और संतो की बात को मानते तो शायद इस देश की कुछ और ही तस्‍वीर सामने होती होती । संत हमेशा एक बात कहते है की कण कण में इश्‍वर है और इश्‍वर इन्‍सान के अन्‍दर है किन्‍तु लोग बार बार यह सुनने के बाद भी उन्‍हें मंदिरो और पत्‍थर की मुर्तियों में ढुंढ रहे है ।ऐसा नही है की मैं मुर्ति पुजा या तीर्थ स्‍थानो पर कोई सवाल खडा् कर रहा हुं पर क्‍या कहीं ये लिखा है कि आप इन्‍सानो से नफरत और बैर रख कर इश्‍वर की तरफ भागे। जब कण कण में इश्‍वर है और हर एक इन्‍सान में भगवान बसता है तो कभी सोचा की उस इन्‍सान की कद्र करनी चाहिये। हम एक तीर्थ स्‍थान पर जाते है और वहॉ से भगवान की मुर्तिया,मालाऐं और पता नही ऐसे ही कितने सामान हजारो रूपये खर्च कर खरीदते है जो पहले से ही हमारे पास होता है पर कभी ये नही देखा की वहॉ और हमारे आसपास कितने लोग शाम को भुखे सोते है और पता नही कितने लोग सर्दी,गर्मी और बारिस की वजह से इस दिखावे की दुनिया को छोड् जाते है । पर हमें इस की क्‍या परवाह हम तो इश्‍वर को उस मुर्तियों,मंदिरो और तीर्थ स्‍थानों में ढुंढ रहे है उस इन्‍सान में नही जो भुख और सर्दी गर्मी से दम तोड् रहा है। भगवान के लिए हमने इतने मंदिर बनवाए और उन्‍ही के लिए लड् रहे खुन बहा रहे है पर कितने जरूरतमंद इन्‍सानो को घर बनावा कर दिये या उनके घर को टुटने से बचाने के लिए खुन तो छोडिये हमने पसिना भी बहाया हो जिसमें वास्‍तव में इश्‍वर का निवास है । हम हर वर्ष जाते है तीर्थो पर स्‍नान कर अपने पाप धोने व उनसे मुक्ति पाने लेकिन क्‍या ऐसे लोगो के पाप धुलते है जो ऑखों वाले अन्‍धे बने हुए है ? सच क्‍या है ? क्‍या हम वास्‍तव में इश्‍वर को चाहते है या उसे पाने का दिखावा कर रहे है? क्‍या हम अपने आप को धोखा तो नही दे रहे है ऐसा करके ? वास्‍तव में जिस घर में भगवान रहता है उसे हम तोड् कर अगले जन्‍मो से छुटकारा पाने की कोशिस तो नही कर रहे है ? सच क्‍या है ?

Tuesday, December 14, 2010

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About Myself:

Im a Die - Hard ‘Go-getter’who newer belives that ‘Sky is
limit’.infact sky is lilmitless. I always strive hard to put my
100%in whatever i do.I am capable of handling responsibil
ities in high-pressure siutions ‘Perfect Accomplishment’ is
what I work for.

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